दृष्टिकोण
बदलने की आवश्यकता
छाया चन्देल
रविवार
24 जून,2012 के ‘राष्ट्रीय सहारा”
के ‘पैसा वसूल’ पृष्ठ के अंतर्गत कमाल अहमद रूमी का आलेख
–‘बेटी की शादी
के लिए करें फाइनेंशियल प्लानिंग’
प्रकाशित हुआ है. मुझे
लगा कि यह आलेख बेटी के भविष्य को सुरक्षित करने के बजाय विवाह के नाम पर प्रदर्शन और दहेज जैसी सामाजिक
कुरीति को ही प्रत्यक्ष रूप से बढ़ावा देने वाला है. ‘फाइनेशियल प्लानिंग’ के अंतर्गत लड़की के विवाह
के लिए पैसा एकत्र करने की जिन योजनाओं का
उल्लेख इस लेख में किया गया है उनमें
विवाह के बजाय उसकी शिक्षा और अन्य प्रकार से उसके भविष्य को सुरक्षित करने की बातें
क्यों नहीं की गई?
लड़की के विवाह के लिए धन एकत्रित
करना, दहेज देना, धूमधाम से विवाह करना आदि बातें सामंती सोच का परिणाम हैं. इस सच से सभी परिचित हैं कि लड़की
के विवाह में लाखों खर्च करने के बाद भी उन्हें सम्मानजनक
जीवन नहीं जीने दिया जाता. मोटे दहेज और बारातियों के फाइव स्टार स्वागत-सत्कार के
बाद भी उन्हें दहेज प्रताड़ना से मुक्ति नहीं मिल रही. हत्याओं और आत्महत्याओं की घटनाएं
निरंतर बढ़ती जा रही हैं. ऎसी स्थिति में सरकार, संस्थाओं, मीडिया आदि का यह दायित्व
बनता है कि वह ऎसे उपायों की चर्चा करें, उन्हें बढ़ावा दें जिनसे दहेज-दानव से मुक्ति
मिले न कि ऎसे सुझाव और ऎसी फाइनेंशियल प्लानिंग की बातें की जाएं जिन्हें पढ़कर दहेज
जैसी आपराधिक प्रवृत्ति को बढ़ावा मिले.
मैं समझती हूं कि ऎसी योजनाएं अपनाने के सुझाव
बेटॊं के लिए क्यों नहीं दिए जाते जो अपना जुलूस (बारात) निकालने के लिए लड़की वालों
की ओर बेशर्मी से लपलपाती जुबान और दृष्टि लिए दिखाई देते हैं. जब उन्हें अपना जुलूस
निकालना ही है तो उनके मां-बाप उनके बचपन से ही ऎसी योजनाओं में निवेश करके एक अच्छी
खासी रकम एकत्र
कर सकते हैं और उन्हें लड़की वालों
से भीख या फिरौती जैसी मांगें
कर पैसा वसूल करने की आवश्यकता
नहीं होगी. लड़कियों को शिक्षित करने के लिए योजनाएं बताई जाएं न कि शादी के लिए. शादी
लड़का और लड़की दोनों की आवश्यकता है. इसको दोनों पक्षों के लोगों को मिलकर वहन करना
चाहिए. लड़कियां भी लड़कों की भांति पढ़-लिखकर नौकरी करते हुए घर-परिवार पर ही खर्च करती
हैं. अतः आवश्यकता इस बात की है कि हर लड़की को आत्मनिर्भर बनाए जाने वाली योजनाओं की
चर्चा की जाए, उन्हें उससे अवगत कराया जाए
और उसके लिए उन्हें प्रोत्साहित किया जाए.
विवाह सादगीपूर्ण ढंग से हो, इस बात पर जोर न देकर इस बात पर दिया जा रहा है कि शानदार और धूमधाम
से शादी करने के लिए बच्ची के मां-बाप को उसके जन्मते ही अमुक-अमुक योजनाओं में निवेश
करना प्रारंभ कर देना चाहिए. यह शानदार या धूमधाम क्या होता है? जिसके पास पैसा है
वह कर ही रहा है. जब शादियों का मौसम आता है तब दिल्ली ही
नहीं अन्य शहरों में भी प्रत्येक सड़क पर बैंड-बाजों के साथ लड़के (दूल्हे)
का जुलूस निकल रहा होता है –इससे ट्रेफिक जाम की जो स्थिति पैदा होती
है वह भुक्तभोगी ही जानता है. फिर भी परम्पराओं के नाम पर बदबू मारती प्रथाओं को पढ़ा-लिखा युवावर्ग भी
दिमाग में ताला लगाए ढोए जा रहा है. कितना दुर्भाग्यपूर्ण है यह सब.
शादी रजिस्ट्रेशन द्वारा होनी चाहिए. प्रीतिभोज
की सादगीपूर्ण व्यवस्था की जानी चाहिए जिसका खर्च दोनों पक्ष सम्मिलित रूप से वहन करें.
जुलूस जैसी स्थितियों पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए. मैं पुनः अपनी बात दोहराना चाहती
हूं कि बेटे वालों को अपने बच्चे के विवाह के लिए बराबर मिलकर खर्च उठाना चाहिए .
समाज में लड़कियों के प्रति दृष्टिकोण बदलने
की आवश्यकता है. उन्हें पढ़ा-लिखाकर सक्षम बनाने की सोच हर मां-बाप को अपने में विकसित
करनी होगी; तभी
उन्हें लड़केवालों के भीख मांगने की प्रवृत्ति से और लड़कियों को दहेज के लिए प्रताड़ित होने से मुक्ति मिल सकेगी.
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ब्लॉग की दुनिया में प्रवेश करने के लिए बधाई और शुभकामनाएं… पहली ही पोस्टिंग इतनी महत्वपूर्ण और गौरतलब… बेटियों के विवाह को बाजार बना दिया गया है… इस सोच को बदलने की बेहद ज़रूरत है… ऐसे आलेखों की सच में ज़रूरत है
जवाब देंहटाएंछाया जी
जवाब देंहटाएंआप ने सही दृष्टिकोण सामने रखा है.
शुभ कामनाओँ सहित आप का
अरविंद कुमार
प्रधान संपादक, अरविंद लैक्सिकन - इंटरनैट पर हिंदी इंग्लिश महाथिसारस
सी-18 चंद्र नगर
गाज़ियाबाद 201 011
टेलिफ़ोन - लैंडलाइन (0120) 411 0655 - मोबाइल 09716116106
bahut sahi likha hai aapne .behtreen lekh .......
जवाब देंहटाएंछाया जी ,
जवाब देंहटाएंआपकी आपत्ति सही है . ये निवेश गलत रिवाजों को हवा दे रहे हैं ! बेटियों की शादी के समारोह के लिए बचत क्यों की जाये ! वे इतनी सक्षम हैं कि ऐसा लड़का ढूंढ सकें जो ताम झाम और फ़िज़ूल के खर्च में यकीन न रखता हो . अनावश्यक उत्सवधर्मिता भी शादी के टिकने की गारंटी नहीं है !
इसे आपको किसी अखबार में भेजना चाहिए ताकि एक बड़े पाठकवर्ग तक आपकी बात पहुँच सके !
आप ऐसे मुद्दों पर लिखते रहिये !
सुधा अरोड़ा
छाया जी मैं आपसे पूर्णतया सहमत हूँ.
जवाब देंहटाएंमहेंद्र.
बहुत-सी प्रतिक्रियाएं सीधे मुझे पत्रों के रूप में मिल रही हैं. उन्हे प्रकाशित करने के लिए गूगल खाते की आवश्यकता होती है अतः उन्हें अपने खाते से प्रकाशित करने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है.
जवाब देंहटाएंछाया चन्देल
छाया जी , आपकी आपत्ति सही है . ये निवेश गलत रिवाजों को हवा दे रहे हैं ! बेटियों की शादी के समारोह के लिए बचत क्यों की जाये ! वे इतनी सक्षम हैं कि ऐसा लड़का ढूंढ सकें जो ताम झाम और फ़िज़ूल के खर्च में यकीन न रखता हो . अनावश्यक उत्सवधर्मिता शादी के टिकने की गारंटी नहीं है !
जवाब देंहटाएंआप ऐसे मुद्दों पर लिखते रहिये ! आपको बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं !
BLOG KEE DUNIYA MEIN AANE KE LIYE AAPKO DHERON BADHAAEEYAN . AAPNE
जवाब देंहटाएंBADAA GAMBEER MUDDAA UTHAAYAA HAI . YE MUDDAA SAANP BAN KAR HAR KISEE
KO DAS RAHAA HAI . YAHAN ANGREZON MEIN SHAADEE KAA KHARCHA DONO PAKSH
VAHAN KARTE HAIN LEKIN BHARTIYA SAMAAJ IS ` KHOOBEE ` KO ABHEE TAK
APNAA NAHIN SAKAA HAI . . SAARE KE SAARE KHARCHE KAA BOJH LADKEE WAALON
KO HEE UTHAANAA PADTAA HAI . SAINKDON POUNDS KEE SHRAAB BEWAZAH HEE
GLAASON MEIN UNDELEE JAATEE HAI YANI ZAAYAA KEE JAATEE HAI . JAESAA
RAJA VAESEE PRAJA . IS SAMASYA KO DOOR KARNE KE LIYE ` RAJAON ` KO
KUCHH N KUCHH KAR KE DIKHAANAA HOGA
BLOG SHURU KARNE KE LIYE EK BAAR AUR BADHAAEE AAPKO .
aapne apne is lekh ke dwara bahut hee gambhir mudde ko uthakar srahniya kary kiya hai. jiska sarvatr swagat kiya jana chahiye.
जवाब देंहटाएंUmda aalekh..bahut achcha laga padh kar...
जवाब देंहटाएंआपकी सोच सही है !
जवाब देंहटाएंसादर
इला